Wednesday, November 23, 2022


प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने ईश्वर के प्रति अपनी रहस्यमयी भावना को अभिव्यक्त किया है-

 

मैं कब से ढ़ूँढ़ रहा हूँ।

अपने प्रकाश की रेखा।।

 

तम के तट पर अंकित है।

निःसीम नियति का लेखा।।

 

देने वाले को अब तक।

मैं देख नहीं पाया हूँ।।

 

पर पल भर सुख भी देखा।

फिर पल भर दुःख भी देखा।।

 

किस का आलोक गगन से।

रवि शशि उडुगन बिखराते।।

               भगवती चरण वर्मा

 

 

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