प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने ईश्वर के प्रति
अपनी रहस्यमयी भावना को अभिव्यक्त किया है-
मैं कब से
ढ़ूँढ़ रहा हूँ।
अपने प्रकाश की
रेखा।।
तम के तट पर
अंकित है।
निःसीम नियति
का लेखा।।
देने वाले को
अब तक।
मैं देख नहीं
पाया हूँ।।
पर पल भर सुख
भी देखा।
फिर पल भर दुःख
भी देखा।।
किस का आलोक
गगन से।
रवि शशि उडुगन
बिखराते।।
भगवती चरण वर्मा
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