Tuesday, November 15, 2022


गीत

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

शरद सुहावनि आई रे

नया रंग भर लाई रे।

 

पत्तों पे हरियाली है

कली-कली मुस्काई है,

बादल उड़ते-फिरते रहते

कभी धूप, कभी छाँव है।

 

नदिया की धारा को देखो

मन्द-मन्द सी बहती है,

क्यूँ तेरे मेरे मन में

उथल-पुथल सी होती है।

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