प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने अगले जन्म में
प्रभु से किसी ना किसी तरह सामीप्य बनाये रखने की कामना की है-
मानुष हौं तो
वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जौ पसु हौं तो
कहा बस मेरौं चरौं नित नंद की धेनु मँझारन।।
पाहन हौं तो
वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर धारन।
जो खग हौं
बसेरो करौं मिल कालिन्दी-कूल-कदम्ब की डारन।।
रसखान
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