सुबह हो चाहे जितनी सबेरे
शाम से पहले शाम न हो
रात से पहले रात।
बसंत चाहे खिले शिशिर में
पतझड़ से पहले पतझार न हो।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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