विष्णु प्रभाकर
डॉ. मंजूश्री गर्ग
जन्म-तिथि- 21 जून 1912
पुण्य-तिथि- 11 अपैल 2009
विष्णु प्रभाकर का जन्म
उत्तर प्रदेश के मीरापुर गाँव में हुआ था. आपके पिता दुर्गाप्रसाद धार्मिक विचारों
के थे और माता महादेवी शिक्षित महिला थीं और उन्होंने अपने समय में पर्दा प्रथा का
विरोध किया था. घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी इसलिये कम उम्र में ही
आपने नौकरी करनी प्रारंभ कर दी और अपनी पढ़ाई भी जारी रखी. अपनी लगनशीलता से
हिन्दी में प्रभाकर और हिन्दी भूषण की उपाधि प्राप्त की. साथ ही संस्कृत में
प्रज्ञा और अंग्रेजी की बी. ए. की डिग्री प्राप्त की. आपका नाम प्रारंभ में विष्णु
दयाल था, बाद में विष्णु प्रभाकर रखा. कुछ समय आकाशवाणी में नाट्य निर्देशन का
कार्य किया.
विष्णु प्रभाकर पर महात्मा गाँधी के विचारों
का बहुत प्रभाव था. स्वतंत्रता संग्राम में अपनी लेखनी के द्वारा निरंतर संघर्षरत
रहे. आपने प्रेमचंद, जैनेन्द्र, अज्ञेय जैसे लेखकों के साथ रहकर भी अपनी अलग पहचान
बनायी. कभी किसी खेमे में नहीं रहे. आपने लघु कहानी, नाटक, कहानी, उपन्यास,
एकांकी, जीवनी, आत्मकथा, आदि विपुल मात्रा में कथा साहित्य की रचना की. आपकी पहली
कहानी सन् 1931 ई. में दीवाली प्रकाशित हुई. आपको प्रसिद्धि प्रमुख रूप
से बांग्ला लेखक श्री शरतचंद्र की जीवनी आवारा मसीहा लिखने पर मिली, जो सन्
1974 ई. में प्रकाशित हुई. प्रारम्भ में आवारा
मसीहा नाम पर भी विवाद था, जिस पर आपने लिखा-
आवारा मनुष्य में सब गुण
होते हैं पर उसके सामने दिशा नहीं होती. जिस दिन उसे दिशा मिल जाती है उसी दिन वह
मसीहा बन जाता है. मुझे खुशी है कि अधिकांश मित्रों ने इस नाम को इसी सन्दर्भ में
स्वीकार कर लिया.
आपकी प्रमुख रचनायें हैं-
उपन्यास- ढ़लती रात,
अर्द्धनारीश्वर, स्वप्नमयी, क्षमादान, दो मित्र, पाप का घड़ा, आदि.
कहानी-संग्रह- धरती अब भी
घूम रही है, संघर्ष के बाद, मेरा वतन, खिलौने, आदि और अन्त.
नाटक- टूटते परिवेश, हत्या
के बाद, अशोक, अब और नहीं, प्रकाश और परछाइयाँ, नवप्रभात, डॉक्टर, आदि
एकांकी-संग्रह- उजास
कविता-संग्रह- चलता चला
जाऊँगा (मृत्यु के बाद सन् 2010 में प्रकाशित)
आत्म-कथा- तीन भाग- पंखहीन,
और पंछी उड़ गया, मुक्त गगन में.
विष्णु प्रभाकर को अनेक
पुरस्कारों से सम्मानित किया गया जैसे- पद्म भूषण, मूर्तिदेवी सम्मान, साहित्य
अकादमी पुरस्कार. सन् 2005 में राष्ट्रपति भवन में कथित दुर्व्यवहार के कारण आपने
पद्म भूषण की उपाधि लौटा दी थी.
विष्णु प्रभाकर आधुनिक
लेखकों को भी पढ़ते थे और समय-समय पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त भी करते थे. आधुनिक
विचारों का आपके व्यक्तित्व पर बहुत प्रभाव भी था. यही कारण था कि आपकी इच्छानुसार
आपका पार्थिव शरीर भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान को सौंप दिया गया.
विष्णु प्रभाकर की कविता का
अंश-
त्रास देता है जो
वह हँसता है
त्रसित है जो
वह रोता है
कितनी निकटता है
रोने और हँसने में।
विष्णु प्रभाकर
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