हिन्दी साहित्य
Tuesday, July 21, 2020
कटीले शूल भी दुलरा रहे हैं पाँव को मेरे।
कहीं तुम पंथ पर पलकें बिछाए तो नहीं बैठी।।
बाल स्वरूप राही
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