इंटरव्यू
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
इंटरव्यू हिन्दी गद्य
साहित्य की नव्यतम विधाओं में से एक है. इसके प्रवृतन का श्रेय श्री बनारसी दास
चतुर्वेदी जी को है जिन्होंने अपने द्वारा सम्पादित पत्रिका विशाल भारत में रत्नाकर जी का इंटरव्यू(रत्नाकर जी से
बातचीत) और प्रेमचंद जी का इंटरव्यू(प्रेमचंद जी के साथ दो दिन) क्रमशः सितम्बर,
1931 और जनवरी, 1932 के अंकों में प्रकाशित किया.
परिभाषा
इंटरव्यू से अभिप्राय उस
रचना से है जिसमें लेखक व्यक्ति विशेष के साथ साक्षात्कार करने के बाद प्रायः
निश्चित प्रश्नमाला के आधार पर उसके व्यक्तित्व और कृतित्व के सम्बन्ध में
प्रामाणिक जानकारी प्राप्त करता है और फिर अपने मन पर पड़े प्रभाव को लिपिबद्ध
करता है.
साक्षात्कार, भेंट-वार्ता,
इंटरव्यू के ही पर्यायवाची हैं. कुछ विद्वान परिचर्चा को भी इटंरव्यू का
पर्यायवाची मानते हैं जबकि इंटरव्यू और परिचर्चा में बहुत अन्तर है.
परिचर्चा
परिचर्चा किसी विषय पर
विभिन्न विद्वानों के विचार प्राप्त करने के लिये आयोजित की जाती है. परिचर्चा में
लेखक विषय से सम्बन्धित एक प्रश्नावली तैय्यार करता है और विषय से सम्बन्धित
विद्वानों से उनके मत प्राप्त करता है. या तो लेखक एक-एक प्रश्न पर विविध
विद्वानों के मत लिपिबद्ध करते हैं या क्रमशः एक-एक विद्वान से सभी प्रश्नों के
प्राप्त उत्तरों को लिपिबद्ध करते हैं. परिचर्चा अधिकांशतः समसामयिक विषयों पर ही
होती है.
इंटरव्यू और परिचर्चा में अन्तर
1. इंटरव्यू एक समय में एक
व्यक्ति का लिया जाता है जबकि परिचर्चा दो या दो से अधिक व्यक्तियों के साथ की
जाती है.
2. इंटरव्यू में व्यैक्तिकता
अधिक रहती है जबकि परिचर्चा में पूर्व निर्धारित प्रश्नमाला के आधार पर ही लेखक
प्रश्न पूछता है.
No comments:
Post a Comment