Wednesday, May 23, 2018




कान्हा! मैं द्वारकाधीश को नहीं जानती।
मुझसे मिलना है तो वही ग्वाले का रूप रख,
सिर पर मोर मुकुट लगा आना होगा और जो
बाँसुरी रखी है मेरे पास, उसे बजाना होगा।
तभी खुलेंगें द्वार ह्रदय के तुम्हारे लिये।

                  डॉ0 मंजूश्री गर्ग



No comments:

Post a Comment