पं0 श्रीधर पाठक
जन्म-तिथि- 11 जनवरी, सन् 1858 ई0(आगरा)
पुण्य-तिथि- 13 सितंबर, सन् 1928 ई0
पं0 श्रीधर पाठक आधुनिक काल
के खड़ी बोली हिंदी के प्रथम कवि हैं. आपने अपनी रचनाओं में ब्रजभाषा और खड़ी बोली
दोनों का प्रयोग किया है. आधुनिक काल के आरंभ में हिन्दी कविता के लिये ब्रजभाषा
ही उपयुक्त मानी जाती रही, क्योंकि स्वयं आधुनिक काल के जनक भारतेन्दु
हरिश्चन्द्र(जिन्होंने खड़ी बोली को मानक रूप दिया) हिन्दी कविता के लिये ब्रजभाषा
के पक्षधर रहे. किन्तु आधुनिक काल के कुछ समय बाद हिन्दी कविता की माध्यम खड़ी
बोली बनी और इसके प्रथम सशक्त हस्ताक्षर रहे कवि पं0 श्रीधर पाठक.
आधुनिक हिन्दी काव्य में यह
समय स्वच्छंदतावादी काव्य-धारा का माना जाता है. स्वच्छंदतावादी कविता में प्रकृति
चित्रण के अतिरिक्त व्यैक्तिक भावनाओं की अभिव्यक्ति, समाज सुधार, देशप्रेम की
भावनाओँ की अभिव्यक्ति, नये-नये छंदो का प्रयोग होता था. पं0 श्रीधर पाठक की
कविताओं में यह सभी गुण देखने को मिलते हैं. आगे चलकर यह सभी गुण छायावादी काव्य
में विकसित हुये. इस तरह
पं0 श्रीधर पाठक छायावाद के
प्रवर्तक के रूप में भी जाने जाते हैं. प्रस्तुत कविता में कवि ने अपनी देश-प्रेम
की भावना को अभिव्यक्त किया है-
निज स्वदेश ही एक सर्व पर ब्रह्म-लोक है
निज स्वदेश ही एक सर्व पर अमर-लोक है
निज स्वदेश विज्ञान-ज्ञान-आनंद-धाम है
निज स्वदेश ही भुवि त्रिलोक-शोभाभिराम है
सो निज स्वदेश का, सर्व विधि, प्रियवर, आराधन करो
अविरत-सेवा-सन्नद्ध हो सब विधि सुख-साधन करो।
पं0
श्रीधर पाठक
गुनवंत हेमंत पं0 श्रीधर
पाठक की पहली रचना है, मनोविनोद में बाल कवितायें हैं. पं0 श्रीधर पाठक ने
गोल्डस्मिथ के द हरमिट का हिन्दी खड़ी बोली पद्य में अनुवाद किया. यह एक
खण्ड काव्य है इसका नाम एकांतवास योगी है. यह हिन्दी खड़ी बोली का प्रथम
खण्ड काव्य है. यह प्रेम काव्य है जिसमें एक रमणी द्वारा उपेक्षित पुरूष योगी बन
जाता है. बाद में वही रमणी उस पुरूष की पुरूष वेश रखकर खोज करती है. बाद में योगी
अपनी प्रियतमा को पहचान लेता है. श्रांत पथिक भी प्रसिद्ध रचना है.
---------------------------------
-------------
No comments:
Post a Comment