हिन्दी साहित्य
Monday, May 28, 2018
सुबह-सबेरे
न जाने कौन परिंदा
दे जाता प्रेम-पाती।
मंत्र-मुग्ध से रहते हम
बाँचता रहता मन दिन-भर।
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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