रिपोर्ताज
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
रिपोर्ताज हिन्दी गद्य साहित्य की
नयी विधा है इसका प्रारम्भ शिवदाससिंह चौहान की रचना लक्ष्मीपुरा(रूपाभ,
दिसम्बर 1938) से माना जाता है. रिपोर्ताज फ्रांसीसी भाषा का शब्द है और इसका
प्रारम्भ द्वितीय विश्व युद्ध सन् 1936 ई0 के समय हुआ था. रूसी साहित्यकारों ने रिपोर्ताज
का विशेष प्रचार-प्रसार किया.
परिभाषा-
जिस रचना में वर्ण्य विषय
का आँखों देखा तथा कानों सुना ऐसा विवरण प्रस्तुत किया जाये कि पाठक की
ह्रदय-तन्त्री के तार झंकृत हो उठें और वह उसे भूल न सके, उसे रिपोर्ताज कहते हैं.
रिपोर्ट और रिपोर्ताज में
अन्तर-
रिपोर्ट में जहाँ विवरण में
कलात्मक अभिव्यक्ति का अभाव होता है तथा तथ्यों का लेखा-जोखा मात्र रहता है वहीं रिपोर्ताज
में तथ्यों को कलात्मक एवम् प्रभावोत्पादक ढ़ंग से अभिव्यक्त किया जाता है.
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