माँ हमें प्यार व ममता ही
नहीं देती, हमारे नजदीकी रिश्तों में आई दरारों को कब भर देती है पता ही नहीं
चलता. इसी संवेदना की अभिव्यक्ति कवि ने प्रस्तुत पंक्तियों में की है-
घर में झीने रिश्ते मैंने लाखों बार उधड़ते देखे,
चुपके-चुपके कर देती है, जाने कब तुरपाई अम्मा।
आलोक
श्रीवास्तव
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