Sunday, March 5, 2023

 

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने बसंत ऋतु का वर्णन किया है-

देखते हैं जिधर ही उधर ही रसाल पुंज

मंजू मंजरी से मढ़े फूले न समाते हैं।

कहीं अरूणाभ, कहीं पीत पुष्प राग प्रभा,

उमड़ रही है, मन मग्न हुये जाते हैं।

कोयल उसी में कहीं छिपी कूक उठी, जहाँ-

नीचे बाल वृन्द उसी बोल से चिढ़ाते हैं।

                        आचार्य रामचन्द्र शुक्ल


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