Thursday, January 27, 2022


भूलेहूँ कबहूँ न जाइए, देस-विमुखजन पास।

देश-विरोधी-संग तें, भलो नरक कौ वास।।

सुख सौं करि लीजै सहन, कोटिन कठिन कलेस।

विधना, दै न मिलाइयो, जे नासत निज देस।।

सिय-विरंचि-हरिलोकें, विपत सुनावै रोय।

पै स्वदेस-विद्रोहि कों, सरन न दैहै कोय।।

                                    वियोगी हरि 

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