भूलेहूँ कबहूँ न जाइए, देस-विमुखजन पास।
देश-विरोधी-संग तें, भलो नरक कौ वास।।
सुख सौं करि लीजै सहन, कोटिन कठिन कलेस।
विधना, दै न मिलाइयो, जे नासत निज देस।।
सिय-विरंचि-हरिलोकें, विपत सुनावै रोय।
पै स्वदेस-विद्रोहि कों, सरन न दैहै कोय।।
वियोगी हरि
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