Wednesday, July 11, 2018




आचार्य रामचन्द्र शुक्ल


डॉ0 मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 4 अक्टूबर, सन् 1884 ई0
पुण्य-तिथि- 2 फरवरी, सन् 1941 ई0

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण पुस्तक हिन्दी साहित्य का इतिहास है. सन् 1940 ई0 तक के हिन्दी साहित्य के काल-निर्धारण व कालों के नामकरण के लिये सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक के रूप में जानी जाती है. जबकि अनेक विद्वानों ने हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखा है. शुक्ल जी ने हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखते समय कवियों के परिचय के साथ उनके काव्य की प्रवृत्तियों पर विशेष ध्यान दिया है. साथ ही समीक्षायें भी लिखी हैं.

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के पिता पं0 चंद्रबली शुक्ल आपको वकील बनाना चाहते थे. लेकिन आपकी रूचि हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य में थी. सन् 1903 ई0 से सन् 1908 तक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने आनंद कादम्बिनी पत्रिका के सहायक संपादक का कार्य किया. आपकी प्रतिभा से प्रभावित होकर बाबू श्याम सुंदर दास ने आपको हिन्दी शब्द सागर के सहायक संपादक का भार सौंपा. जिसे आपने सफलतापूर्वक पूरा किया. बाबू जी के शब्दों में हिन्दी शब्द सागर की उपयोगिता और सर्वांगपूर्णता का अधिकांश श्रेय आचार्य रामचन्द्र शुक्ल को प्राप्त है. आप नागरी प्रचारिणी पत्रिका के भी संपादक रहे. सन् 1919 ई0 में काशी हिंदू विश्व विद्यालय में हिन्दी के प्राधायापक पद पर नियुक्त हुये. आपने काशी नागरी प्रचारिणी सभा में रहते हुये हिन्दी की बहुत सेवा की.

हिन्दी साहित्य का इतिहास में स्वयं आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कहा है  इस तृतीय उत्थान(सन् 1918 ई0) में समालोचना का आदर्श भी बदला. गुण-दोष के कथन से आगे बढ़कर कवियों की विशेषताओं और अन्तःप्रवृत्ति की छानबीन की ओर ध्यान दिया गया. समीक्षक के रूप में शुक्ल जी ने अपनी पद्धति को युग के अनुरूप बनाया. कवियों की कृतियों की समीक्षा करते समय रस, अलंकार के साथ-साथ कृतियों को मनोविज्ञान के आलोक में भी परखा. नलिन विलोचन शर्मा ने अपनी पुस्तक साहित्य का इतिहास दर्शन में कहा है, शुक्ल जी से बड़ा समीक्षक सम्भवतः उस युग में किसी भी भारतीय भाषा में नहीं था.

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल आलोचक, समीक्षक, निबन्धकार होने के साथ-साथ कवि भी थे. उदाहरण-
देखते हैं जिधर ही उधर ही रसाल पुंज
मंजू मंजरी से मढ़े फूले न समाते हैं।
कहीं अरूणाभ, कहीं पीत पुष्प राग प्रभा,
उमड़ रही है, मन मग्न हुये जाते हैं।
कोयल उसी में कहीं छिपी कूक उठी, जहाँ-
नीचे बाल वृन्द उसी बोल से चिढ़ाते हैं।

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