हिन्दी साहित्य
Wednesday, July 4, 2018
कमल-सरोवर की कमलिनी हो तुम
मृणाल से भी नाजुक मृणालिनी हो तुम।
खुलते हैं अधर तुम्हारे तो लगता है
खिल रही कली कोई सरोवर में।
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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