हिन्दी साहित्य
Sunday, July 22, 2018
हसीन जुल्मों को हम उम्र भर भुला न सके,
नया चिराग मोहब्बत का हम जला न सके।
हमें तो उनकी नजर ने तबाह कर डाला
तमाम उम्र किसी से नजर मिला न सके।
डॉ0 श्री मोहन प्रदीप
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