हिन्दी साहित्य
Tuesday, July 10, 2018
सहज, निर्मल, निश्छल, बह रही प्रेम-धार।
मानों नदी के तटों-बीच, बह रही हो जल-धार।।
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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