प्रस्तुत पंक्तियों में कवि
अपनी राष्ट्रीयता की खातिर आम आदमी को नवीन क्रांति के लिये उत्साहित कर रहा है-
उठें कि हम जो सो रहे हैं
अब उन्हें झिंझोड़ दें
नवीन क्रांति दें, स्वदेश
को नवीन मोड़ दें
समस्त भ्रष्ट-दुष्ट मालियों
का साथ छोड़ दें
स्वदेश के चरित्र को
पवित्रता से जोड़ दें
न छोड़ें मानवीयता
न भूलें भारतीयता
विवेक से अनेकता में एकता
बनी रहे।
उर्मिलेश ‘शंखधार’
No comments:
Post a Comment