Thursday, July 12, 2018




प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अपनी राष्ट्रीयता की खातिर आम आदमी को नवीन क्रांति के लिये उत्साहित कर रहा है-

उठें कि हम जो सो रहे हैं अब उन्हें झिंझोड़ दें
नवीन क्रांति दें, स्वदेश को नवीन मोड़ दें
समस्त भ्रष्ट-दुष्ट मालियों का साथ छोड़ दें
स्वदेश के चरित्र को पवित्रता से जोड़ दें
न छोड़ें मानवीयता
न भूलें भारतीयता
विवेक से अनेकता में एकता बनी रहे।

                            उर्मिलेश शंखधार



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