Saturday, July 7, 2018



प्लेटोनिक लव पर लिखी अमर कहानी उसने कहा था के रचियता के जन्म-दिन पर शत्-शत् नमन-

चन्द्रधर शर्मा गुलेरी


डॉ0 मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 7 जुलाई, सन् 1883 ई0
पुण्य-तिथि- 12 सितम्बर, सन् 1922 ई0

चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जी को हम हिन्दी साहित्य में प्लेटोनिक लव पर लिखी अमर प्रेम कथा उसने कहा था के रचनाकार के रूप मे अधिक जानते हैं जबकि वह हिन्दी भाषा के अनन्य प्रेमी व हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं के रचनाकार हैं. पिता ज्योतिर्विद महामहोपाध्याय पं0 शिवराम शास्त्री मूलतः हिमाचल प्रदेश के गुलेर गाँव के रहने वाले थे. जयपुर के राजा से राज सम्मान पाकर जयपुर में बस गये थे. गुलेर गाँव के होने के कारण ही आपके नाम के आगे उपनाम गुलेरी लगा. गुलेरी जी ने बचपन में ही वेद, पुराणों का अध्ययन कर लिया था. उन्हें हिन्दी, संस्कृत, बांग्ला, मराठी ही नहीं अंग्रेजी, फ्रेंच व जर्मन भाषाओं का भी ज्ञान था.


चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जी ने अपने अध्ययन काल में ही सन् 1900 ई0 में जयपुर में नागरी मंच की स्थापना की थी. सन् 1902 ई0 में समालोचक के संपादक बने. गुलेरी जी काशी की नागरी प्रचारिणी सभा के संपादक मंडल में भी रहे. सन् 1920 ई0 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राचार्य बने. गुलेरी जी सन् 1912 ई0 में जयपुर में वेधशाला के जीर्णोद्धार के लिये गठित मण्डल में सम्मिलित रहे व कैप्टेन गैरेट के साथ मिलकर द जयपुर ऑब्जरवेटरी एण्ड इट्स विल्डर्स शीर्षक ग्रंथ की रचना की.

चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जी की रूचि व ज्ञानक्षेत्र धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुरातत्व, दर्शन, भाषाविज्ञान, शिक्षाशास्त्र और साहित्य से लेकर संगीत, चित्रकला, लोककला, विज्ञान, राजनीति, समसामयिक सामाजिक स्थिति तक फैला हुआ था. अपने संक्षिप्त जीवन काल में किसी स्वतन्त्र ग्रंथ की रचना न कर पाने पर भी विविध विषयों पर लेख, समीक्षायें, आदि लिखीं. हिन्दी साहित्य में भी कहानियों के अतिरिक्त विवेचनात्नक निबन्ध व कवितायें लिखीं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जी की कविता का उदाहरण-
आए प्रचंड रिपु, शब्द गुन उन्हीं का
भेजी सभी जगह एक झुकी कमान
ज्यों युद्ध चिह्न समझे सब लोग धाए,
त्यों साथ ही कह रही यह व्योम वाणी
सुना नहीं क्या रण शंखनाद?
चलो पके खेत किसान छोड़ो
पक्षी इन्हें खाएँ, तुम्हें पड़ा क्या?
भाले भिदाओ, अब खड्ग खोलो
हवा इन्हें साफ किया करेगी
लो शस्त्र, हो लालन देख छाती
स्वाधीन का सुत किसान सशस्त्र दौड़ा
आगे गई धनुष के संग व्योमवाणी।
                     
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