जब पैसे के लिये वैद्य,
हकीम या डॉक्टर व्यक्तियों की जान के दुश्मन बन जाते हैं तब आप किस पर भरोसा करके
अपना इलाज करायेंगे. इसी संवेदना की अभिव्यक्ति कवि ने प्रस्तुत पंक्तियों में की
है-
सेर भर सोने को हजार मन कण्डे में
खाक कर छोटू वैद्य रस जो बनाते हैं,
लाल उसे खाते तो यम को लजाते
और बूढ़े उसे खाते देव बन जाते हैं।
रस है या स्वर्ग का विमान है या पुष्प रथ
खाने में देर नहीं, स्वर्ग ही सिधाते हैं
सुलभ हुआ है खैरागढ़ में स्वर्गवास
और लूट धन छोटू वैद्य सुयश कमाते हैं।
पदुमलाल पन्नालाल बख्शी
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