प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने गोपी-उद्धव संवाद
का वर्णन किया है- गोपियों को लगता है कि कान्हा कूबरि के प्रेम में आसक्त हैं इसी
कारण हमें भूल गये हैं. गोपियाँ ऊधो से कूबरि के पास ले जाने की विनती करती हैं
ताकि वे भी कूबरि से प्रेम-मंत्र सीख सकें और उन्हें भी कान्हा का सामीप्य मिल
सके.
ऊधौ! तहाँई चलौ लै हमें जहँ कूबरि कान्ह बसैं एक
ठौरी।
देखिए दास अघाय
अघाय तिहारे प्रसाद मनोहर जोरी।
कूबति सों कछु
पाइए मंत्र, लगाइए कान्ह सों प्रीति की डोरी।
कूबरि भक्ति
बढ़ाइए बंदि, चढ़ाइए चंदन वंदन रोरी।
भिखारीदास
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