Friday, October 14, 2022


शायद कहीं खिल रही है रात-रानी,

महक रही हैं आने वाली हवायें।


शायद चाँद गगन में चमक रहा है, 

रोशन हो रही हैं राहें सारी।


शायद तुम आ रहे हो मिलने हमसे,

मन में फिर आशा सी जाग रही है।


                                डॉ. मंजूश्री गर्ग

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