Wednesday, August 9, 2023

 

बारह महीना-बसंत


    डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

बसंत तो हमारे मन में है

बारह महीने रहता है

बस उसे महसूस करना है

आनंद का अनुभव करना है.

 

ग्रीष्म ऋतु में

शीतल पेय और आइसक्रीम

मधुर मुस्कान लाते हैं.

कौन कहता है! ग्रीष्म ऋतु शुष्क ऋतु है

खरबूजे, तरबूज की सरसता

इसी ऋतु में मिलती है.

 

बर्षा ऋतु तो

है पावस ऋतु

चारों ओर हरियाली

भीगी-भीगी हवा

पत्तों से झरता पानी

मन लुभाते ही हैं.

पायस फल आम भी

इसी ऋतु में सरसता भरता है.

 

शरद ऋतु तो

है ही पावन ऋतु

मंद-मंद समीर

स्वच्छ चाँदनी

वृक्षों से झरते

हारसिंगार के फूल

मन में मादकता भरते ही हैं

 

शिशिर ऋतु भी

नहीं है कम सुहावनि

सखियों संग

धूप में चौपालें

रात गये चाय-कॉफी की पार्टी

मेवा की गुटरगूँ

गन्ने की मिठास

इसी मौसम की

सौगातें हैं

 

हेमन्त ऋतु है

ले आती है संदेश बसंत का.

अनायास ही

झड़ते पेड़ों से पत्ते

खेतों में खिलने लगते

सरसों के फूल

सोये हुये अरमान

जागने लगते

फिर एक बार

 

बसन्त ऋतु तो

है बसंत ऋतु

प्रकृति के कण-कण में

नव आनंद, नव उत्साह

नजर आने लगता है.

वृक्ष नये परिधान पहन सज जाते हैं

वहीं पशु-पक्षी ही क्या

वन-तड़ाग तक नव उत्साह से

भर जाते हैं फिर एक बार.

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