श्री जगदीश चन्द्र माथुर
डॉ. मंजूश्री गर्ग
जन्म-तिथि- 16 जुलाई सन् 1917 ई. खुर्जा(जिला बुलन्दशहर, उ. प्र.)
पुण्य-तिथि- 14 मई, सन् 1978 ई.
जगदीश चन्द्र माथुर हिन्दी
के प्रसिद्ध नाटक व साहित्यकार थे। प्रारंभिक शिक्षा खुर्जा में हुई थी। उच्च
शिक्षा यूईंग क्रिश्चियन कॉलेज, इलाहाबाद और प्रयाग विश्वविद्यालय में हुई। सन्
1939 ई. में प्रयाग विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम. ए. किया और सन् 1941 ई. में
इंडियन सिविल सर्विस में चुन लिये गये। सरकारी नौकरी करते हुये 6 वर्ष
बिहार शासन के शिक्षा सचिव के रूप में, सन् 1955 ई. से सन् 1962 तक आकाशवाणी-भारत
सरकार के महासंचालक के रूप में, सन् 1963 ई. से सन् 1964 ई. तक उत्तर
बिहार(तिरहुत) के कमिश्नर के रूप में कार्य करने के बाद हार्वर्ड
विश्वविद्यालय, अमेरिका में विजिटिंग फेलो नियुक्त होकर विदेश चले गये। वहाँ
से लौटने के बाद विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करते हुये 19 दिसम्बर, सन् 1971
ई. से भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार रहे।
जगदीश चन्द्र माथुर ने
सरकारी नौकरी करते हुये भारतीय इतिहास व संस्कृति को तत्कालीन संदर्भ में
व्याख्यायित किया और राष्ट्र निर्माण व राष्ट्र पुनर्जागरण में अपना महत्वपूर्ण
योगदान दिया। उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो(AIR) का नाम आकाशवाणी किया था। इन्हीं के
समय में सन् 1959 ई. में भारत में टेलीविजन शुरू हुआ था। उन्होंने हिन्दी और अन्य
भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों को रेडियो व दूरदर्शन से जोड़ा जैसे- सुमित्रानन्दन
पंत, रामधारी सिंह दिनकर, बालकृष्ण शर्मा नवीन, आदि। उन्होंने हिन्दी के माध्यम से
सांस्कृतिक पुनर्जागरण का सूचना तंत्र विकसित और स्थापित किया।
जगदीश चन्द्र माथुर को बचपन
से ही अभिनय कला में रूचि थी। सन् 1930 ई. में तीन लघु नाटक लिखकर अपना लेखन कार्य
शुरू किया। वीर अभिमन्यु नाटक में माथुर साहब ने अभिनय भी किया। प्रयाग में
उनके नाटक चाँद, रूपाभ पत्रिकाओं में प्रकाशित हुये थे। भोर का तारा में
संग्रहीत सभी रचनायें प्रयाग में ही लिखी गयी थीं। अन्य रचनायें हैं-
कोणार्क(1951), ओ मेरे
सपने(1950), शारदीया(1959), दस तस्वीरें(1962), परंपराशील नाटक(1968), पहला
राजा(1968), जिन्होंने जीना जाना है(1972)।
परंपराशील नाटक एक समीक्षा कृति है। इसमें लोक नाट्य की परंपरा और उसकी सामर्थ्य
के विवेचन के अलावा नाटक की मूल दृष्टि को समझाने का प्रयत्न किया गया है। इनके
एकांकी जीवन की यथार्थ संवेदना को चित्रित करते हैं।
हिन्दी भाषा के विषय में
जगदीश चन्द्र माथुर जी के विचार-
सरकार किसी भी भाषा में
चलाई जाये पर लोकतंत्र हिन्दी और भारतीय भाषाओं के बल पर ही चलेगा।
हिन्दी ही सेतु का कार्य
करेगी। सूचना और संचार तंत्र के सहारे ही हम अपनी निरक्षर जनता तक पहुँच सकते हैं।
भारत के बहुमुखी विकास की क्रांति यहीं से शरू होगी।
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