हिन्दी साहित्य
Wednesday, January 9, 2019
कागजी घर में जिसे मैंने पनाह दी दोस्तों
सुर्ख अंगारों से भर रक्खी थी उसने झोलियां।
-ज्ञान प्रकाश विवेक
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