धारि निज अंक राम को माता। लह्यो मोद लखि मुख मृदुगाता।।
दंत कुंद मुकुता सम सोहै। बंधुजीव सम जीभ बिमोहे।।
किसलय सधार अधार छवि छाजैं। इंद्रनील सम गंड विराजै।।
सुंदर चिबुक नासिका सौहै। कुंकुम तिलक चिलक मन मोहे।।
कामचाप सम भ्रुकुटि विराजै। अलककलित मुख अति छवि छाजै।।
यहि विधि सकल राम के अंगा। लखि चूमति जननी मुख संगा।।
ललकदास
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