Thursday, July 6, 2023


गजल

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

उगते हुये सूरज को ये ढ़कता है कौन।

घनघोर अँधेरे को फिर तोड़ता है कौन।।

 

जलती हुई शमा दम तोड़ चुकी कब का।

परवानों का राग फिर सुनाता है कौन।।

 

पंछियों का राग आज बंद हुआ नीड़ों में।

रात के सपनों को फिर चुराता है कौन।।

 

पथिक आज खो गये घनघोर कोहरे में।

सड़कों को आज फिर जगाता है कौन।।

 

उन्नति के पथ बढ़ रहे हैं हर तरफ।

हार के भाव फिर बढ़ाता है कौन।।

 

बादल का शोर बंद है हर तरफ।

खिलती बगिया को फिर रूलाता है कौन।।

 

दम घुटता है इस जिंदगी में जियें किस तरह।

उम्र भर नींद में फिर सुलाता है कौन।।

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