Wednesday, July 26, 2023

 

जब कोई व्यक्ति किसी कारणवश अपने परिवार, अपने समाज या अपने देश के साथ विश्वासघात करता है तो उसका अन्तर्मन उसे अन्दर ही अन्दर धिक्कारता रहता है। इसी संवेदना की अभिव्यक्ति कवि ने मानसिंह के माध्यम से की है जब मानसिंह राजपूतों की आन के विरूद्ध दुश्मन मुगल सम्राट अकबर से हाथ मिला लेता है-

 

अहो जाति को तिलांजलि दे

हुये भार हम भू के।

कहते ही यह ढ़ुलक गये

दो-चार बूँद आँसू के।


                 श्याम नारायण पाण्डे


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