भगवती चरण वर्मा
डॉ. मंजूश्री गर्ग
जन्म-तिथि- 30 अगस्त, सन् 1903 ई.
पुण्य-तिथि- 5 अक्टूबर, सन् 1981 ई.
भगवती चरण वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी. ए. और एल. एल. बी की परीक्षा पास की. आप प्रारम्भ में पत्रकारिता से जुड़े. कुछ समय फिल्म और आकाशवाणी में भी कार्य किया. बाद में स्वतंत्र लेखन कार्य किया. आपको राज्यसभा की भी मानद सदस्यता प्राप्त थी.
भगवती चरण वर्मा ने प्रारम्भ में कवितायें लिखीं. आपकी कवितायें किसी वाद में नहीं बँधी हैं. बहुत ही सरल और सहज भाषा में लिखी हुई सरस कवितायें हैं जो सीधे मन को छू लेती हैं फिर भी साहित्य जगत में उनका उपन्यासकार का रूप अधिक प्रसिद्ध है. कवि के रूप में रेडियो रूपक महाकाव्य, कर्ण, द्रौपदी लिखे जो सन् 1956 ई. में त्रिपथगा नाम से प्रकाशित हुये. इसके अतिरिक्त मधुकण, प्रेम संगीत, मानव भी आपके काव्य संग्रह हैं. रूमानीपन, नियतिवाद, प्रगतिवाद, मानवतावाद आपकी कविताओं की विशेषतायें हैं.
सन् 1932 ई. में भगवती चरण वर्मा ने चित्रलेखा उपन्यास लिखा जो पाप और पुण्य की समस्या पर लिखा गया है. यह उपन्यास हिन्दी साहित्य में एक क्लासिक प्रेमकथा के रूप में विख्यात है. चित्रलेखा पर दो बार हिन्दी फिल्म बनी हैं. टेढ़े-मेढ़े रास्ते भी प्रसिद्ध राजनीतिक उपन्यास है. इसके अतिरिक्त भूले बिसरे चित्र, आखिरी दाँव, अपने खिलौने, तीन वर्ष, सबहिं नचावत राम गोसाईं, सीधी सच्ची बातें, आदि प्रसिद्ध उपन्यास हैं.
भगवती चरण वर्मा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. काव्य-संग्रह और उपन्यासों के अतिरिक्त राख और चिंगारी(कहानी संग्रह), मेरी कहानियाँ(कहानी संग्रह), मोर्चा बन्दी(कहानी संग्रह), अतीत के गर्त से(संस्मरण), रूपया तुम्हें खा गया(नाटक), साहित्य के सिद्धान्त तथा रूप(साहित्य आलोचना), आदि कृतियाँ भी प्रकाशित हुईं.
भगवती चरण वर्मा को सन् 1971 ई. में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला.
भगवती चरण वर्मा की कविताओं के अंश-
अरूण कपोलों पर लज्जा की
भीनी-सी मुस्कान लिये
सुरभित श्वासों में यौवन के
अलसाए से गान लिये।
बरस पड़ी हो मेरे उर में
तुम सहसा रसधार बनी
तुम में लय होकर अभिलाषा
एक बार साकार बनी।
(1)
मैं कब से ढ़ूँढ़ रहा हूँ
अपने प्रकाश की रेखा।
तम के तट पर अंकित है
निःसीम नियति का लेखा।
देने वाले को अब तक
मैं देख नहीं पाया हूँ।
(2)
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