राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
जन्म-तिथि- 23 सितंबर, सन् 1908 ई0
पुण्य-तिथि- 24 अप्रैल, सन् 1974 ई0
रामधारी सिंह दिनकर आधुनिक युग
के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में जाने जाते हैं. दिनकर आपका उपनाम है
जो आपने स्वयं रखा था. स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय आप एक विद्रोही कवि के रूप में
जाने जाते थे, लेकिन स्वतन्त्रता मिलने के बाद राष्ट्र कवि के रूप में
सम्मानित हुये. वीर रस के साथ-साथ श्रृंगार रस से परिपूर्ण कवितायें ही नहीं लिखी
वरन् उर्वशी जैसा श्रृंगार रस से परिपूर्ण महाकाव्य भी लिखा. आपने सामाजिक
व आर्थिक असमानता व शोषण के विरोध में भी कवितायें लिखीं. दिनकर जी ने कविताओं के
अतिरिक्त गद्य भी बहुतायात से लिखा है. जिसमें संस्कृति के चार अध्याय(सन्
1956 ई0 में प्रकाशित) आपका विराट ग्रन्थ है जिसमें शोध और अनुशीलन के आधार पर
मानव सभ्यता के इतिहास को चार भागों में बाँटकर अध्ययन किया गया है. दिनकर जी ने
कहा कि सांस्कृतिक, भाषाई और विविधताओं के बाबजूद भारत एक देश है क्योंकि सारी
विविधताओं के बाबजूद भी, हमारी सोच एक जैसी है.
दिनकर जी ने प्रारंभिक
शिक्षा संस्कृत के पंडित से ली थी, बाद में बोरो नामक गाँव में राष्ट्रीय मिडिल
स्कूल, जो सरकारी शिक्षा व्यवस्था के विरोध में खोला गया था, में प्रवेश लिया.
आपके मन-मस्तिष्क में राष्ट्रीयता की भावना का विकास यहीं से प्रारंभ हुआ. पटना
विश्वविद्यालय से सन् 1932 ई0 में इतिहास में बी0 ए0 ऑनर्स किया. स्नात्तकोत्तर की
उपाधि न होने पर भी आपको आपकी असाधारण योग्यता व प्रतिभा के कारण महाविद्यालय में हिन्दी का अध्यापक नियुक्त
किया गया. भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति बनाये गये व भागलपुर विश्वविद्यालय ने
आपको डी0 लिट् की उपाधि से सम्मानित किया. भारत सरकार ने सन् 1952 ई0 में आपको
राज्य सभा का सदस्य मनोनीत किया व सन् 1965 ई0 से सन् 1971 ई0 तक हिन्दी सलाहकार
नियुक्त किया. सन् 1959 ई0 में आपको पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.
दिनकर जी ने रेणुका में
अतीत के गौरव के प्रति कवि का सहज आदर और आकर्षण अभिव्यक्ति हुआ है वहीं हुँकार
में क्रान्तिकारी विचार अभिव्यक्त हुये हैं. सामधेनी में सामाजिक चेतना
के स्वर ओजस्वी रूप में अभिव्यक्त हुये हैं. उर्वशी महाकाव्य में कवि ने
उर्वशी और पुरूरवा की पौराणिक प्रेम कथा के माध्यम से देवता व मनुष्य, स्वर्ग व
पृथ्वी, अप्सरा व लक्ष्मी और अध्यात्म के सम्बन्धों का अद्भुत विश्लेषण किया है. आपको
उर्वशी महाकाव्य के लिये भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया
गया व संस्कृति के चार अध्याय के लिये
साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. दिनकर जी की लगभग
साठ से अधिक प्रकाशित पुस्तकें हैं. वीरेश कुमार द्वारा संपादित पुस्तक रामधारी
सिंह दिनकर/संकलित निबंध में जहाँ आपकी प्रतिनिधि गद्य रचनायें संकलित
हैं वहीं संचयिता में स्वयं आपके द्वारा चयनित पद्य रचनायें संकलित हैं.
आपके कहे हुये कुछ कथन उक्तियों के रूप में प्रयुक्त होते हैं.
उदाहरण-
क्षमा शोभती उस भुजंग को,
जिसके पास गरल हो।
उसको क्या जो दंतहीन,
विष रहित, विनीत, सरल हो।
रामधारी सिंह ‘दिनकर’
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