माना कि चाँद-सूरज
दूर, बहुत दूर हैं हमसे।
पर, आराधना करना कब मना है,
अर्ध्य देना कब मना है।
पहुँचती ही होंगी स्तुति उन
तक,
जल-बिन्दु बाष्प बनकर।
जैसे रजत किरणें, स्वर्ण
किरणें
पहुँचती हैं हम तक।
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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