हिन्दी साहित्य
Saturday, September 8, 2018
अरूण कपोलों पर लज्जा की
भीनी-सी मुस्कान लिए,
सुरभित श्वासों में यौवन के
अलसाए-से गान लिए,
बरस पड़ी हो मेरे मरू में,
तुम सहसा रसधार बनी,
तुममें लय होकर अभिलाषा
एक बार साकार बनी।
भगवती चरण वर्मा
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