श्री सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
जन्म-तिथि- 7 मार्च, सन् 1911 ई0
पुण्य-तिथि- 4 अप्रैल, सन् 1987 ई0
श्री सच्चिदानंद हीरानंद
वात्स्यायन अज्ञेय निबन्धकार, कथाकार, सम्पादक, अध्यापक, स्वतन्त्रता सेनानी, एक
सैनिक बहुमुखी प्रतिभा के कवि थे. आपने हिन्दी साहित्य में प्रयोगवाद एवम् नयी
कविता को प्रतिष्ठित किया. आपके पिता पं0 हीरानंद शास्त्री प्राचीन लिपियों के
विशेषज्ञ थे. पिता की नौकरी में स्थान परिवर्तन के कारण आपका बचपन कई नगरों में
बीता व शिक्षा भी अलग-अलग जगह हुई. सन् 1921 ई0 में आपके पिता ने आपका यज्ञोपवीत
संस्कार कराके आपको वात्स्यायान कुल नाम दिया. अज्ञेय आपका उपनाम
है. आपने लाहौर से बी0 एस0 सी0 और अंग्रेजी में एम0 ए0 किया.
अज्ञेय जी ने स्वतन्त्रता
आंदोलन में भी भाग लिया. सन् 1930 ई0 में भगतसिंह के साथ बम बनाते हुये पकड़े गये
और जेल गये. छह वर्ष तक जेल और नजरबंदी भोगने के बाद स्वतन्त्रता आंदोलन छोड़कर
सन् 1936 ई0 में आगरा से प्रकाशित सैनिक समाचार पत्र के संपादक मंडल में
शामिल हो गये. कुछ दिन ऑल इंडिया रेडियो में रहने के बाद सन् 1943 ई0 में अंग्रेजी
सेना में सैनिक के पद पर नियुक्त हुये. सन् 1946 ई0 में सैन्य सेवा छोड़कर आप एकनिष्ठ
होकर हिन्दी साहित्य की सेवा में संलग्न हुये. प्रतीक, नया प्रतीक, दिनमान,
नवभारत टाइम्स, आदि विविध पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया.
अज्ञेय जी ने सन् 1943 ई0
में सात कवियों के वक्तव्य और कविताओं को लेकर एक लंबी भूमिका के साथ संपादन किया,
इसके बाद दूसरा सप्तक, तीसरा सप्तक, चौथा सप्तक संपादित किया. चारों सप्तक के
माध्यम से आपने नये कवियों को प्रतिष्ठित किया व कविता को नया मोड़ दिया. आपने
स्वयं लम्बी कवितायें भी लिखी हैं और बहुत छोटी कवितायें भी; लेकिन सभी में गहन अनुभूति
की अभिव्यक्ति हुई है.
उदाहरण-
छोटी कविता-
उड़ गई चिड़िया
काँपी, फिर
थिर
हो गई पत्ती
अज्ञेय
लंबी कविता का अंश-
किंतु हम हैं द्वीप। हम
धारा नहीं हैं।
स्थिर समर्पण है हमारा। हम
सदा से द्वीप हैं स्रोतस्विनी के।
किंतु हम बहते नहीं हैं।
क्योंकि बहना रेत होना है।
हम बहेंगें तो रहेंगें ही
नहीं।
अज्ञेय
अज्ञेय जी के प्रसिद्ध
काव्य-संग्रह हैं- भग्नदूत, इत्यलम्, हरी घास पर क्षण भर, बाबरा अहेरी,
इंद्रधनुष रौंदे हुये, अरी ओ करूणा प्रभामय, आँगन के पार द्वार, कितनी नावों में
कितनी बार, सागर मुद्रा, आदि. शेखर: एक जीवनी प्रसिद्ध उपन्यास है. इसके अतिरिक्त नदी
के द्वीप और अपने-अपने अजनबी उपन्यास भी लिखे. विपथगा, परम्परा,
कोठरी की बात, शऱणार्थी, जयदोल आपकी प्रसिद्ध कहानियाँ हैं. आपने यात्रा
वृतांत भी लिखे हैं- अरे यायावर रहेगा याद, एक बूँद सहसा उछली. उत्तर
प्रियदर्शी नाटक भी लिखा. साथ ही निबंध, संस्मरण, डायरियाँ, आलोचना, आदि भी
लिखे.
सन् 1964 ई0 में अज्ञेय जी
को आँगन के पार द्वार(काव्य-संग्रह) के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला
और सन् 1978 ई0 में कितनी नावों में कितनी बार(काव्य-संग्रह) के लिये भारतीय
ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला.
No comments:
Post a Comment