हिन्दी साहित्य
Tuesday, September 4, 2018
चंदन का पलना,
रेशम की डोरी।
झूल रहे कान्हा,
झुला रहीं गोपी।
नन्द-यशोदा,
मुस्का रहे दोनों।
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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