हिन्दी साहित्य
Monday, September 10, 2018
आँखों की ज्योति तुम ही,
अधरों की मुस्कान तुम ही।
दिल की धड़कन ही नहीं,
स्पन्दन भी हो तुम ही।
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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