Friday, September 7, 2018




श्री कुँवर नारायण


डॉ0 मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 19 सितंबर, सन् 1927 ई0 फैजाबाद(उ0 प्र0)
पुण्य-तिथि- 15 नवम्बर. सन् 1917 ई0

कुँवर नारायण अति आधुनिक युग के सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार हैं व बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय से एम0 ए0 करने के बाद सन् 1956 ई0 में चक्रव्यूह नाम से काव्य-संग्रह प्रकाशित हुआ. आप अज्ञेय जी द्वारा संपादित तीसरा सप्तक(1959) के प्रमुख कवियों में रहे हैं. कुँवर नारायण ने अपनी रचनाओं में इतिहास और मिथक के माध्यम से वर्तमान को देखा है. आपकी मूल विधा कविता है लेकिन आपने कहानी, लेख, समीक्षा भी लिखी हैं और रंगमंच, सिनेमा के लिये भी लिखा है. आप सन् 1976 ई0 से सन् 1979 ई0 तक उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के पीठाध्यक्ष रहे. सन् 1975 ई0 से सन् 1978 ई0 तक अज्ञेय जी द्वारा संपादिक पत्रिका नया प्रतीक के संपादक मंडल में रहे.

कुँवर नारायण ने परिवेश हम तुम के माध्यम से मानवीय संबंधों की व्याख्या की है. कठोपनिषद् की नचिकेता की कथा को आधार बनाकर दो खण्ड काव्य आत्मजयी और वाजश्रवा के बहाने लिखे हैं. आपने स्वयं लिखा है- आत्मजयी में यदि मृत्यु की ओर से जीवन को देखा गया है, तो वाजश्रवा के बहाने में जीवन की ओर से मृत्यु को देखने की एक कोशिश है. अन्य काव्य रचनाये हैं-  अपने सामने, कोई दूसरा नहीं, इन दिनों. अन्य रचनायें हैं-आकारो के आस-पास(कहानी संग्रह), कुँवर नारायण-संसार, कुँवर नारायण उपस्थिति(लेख संग्रह), आज और आज से पहले, मेरे साक्षात्कार, साहित्य के कुछ अन्तर्विषयक संदर्भ(समीक्षायें)

कुँवर नारायण को सन् 2005 ई0 में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया और सन् 2009 ई0 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. इसके अतिरिक्त व्यास सम्मान, प्रेमचंद पुरस्कार, श्लाका सम्मान, आदि से भी आपको पुरस्कृत किया गया. आपकी कविता का एक उदाहरण-

जैसे बेबात हँसी आ जाती है
हँसते चेहरों को देखकर
जैसे अनायास आँसू आ जाते है
रोते चेहरों को देखकर
हँसी और रोने के बीच
काश, कुछ ऐसा होता रिश्ता
कि रोते-रोते हँसी आ जाती
जैसे हँसते-हँसते आँसू।

                   कुँवर नारायण

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