मैं फूल नहीं कि सुबह होते हुये मुस्कुराऊँ,
ना ही कोई तारा कि रात होते ही जगमगाऊँ।
मुझे महकने और चहकने के लिये,
अपना सूरज-चाँद चाहिये।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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