जहाँ अति आधुनिक युग में हम विकास के चरम शिखर पर हैं वहीं
बहुत कुछ पीछे छूटता जा रहा है. जैसे अब पल भर में दूर बैठे व्यक्ति से बात करना
सम्भव हो गया है वहीं हाथ की लिखी चिट्ठियों की परम्परा पीछे छूटती जा रही है-
फोन वो खुशबू कहाँ से
लाएगा।
वे जो आती थीं तुम्हारी
चिट्ठियों से।
ममता किरन
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