प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने जनक के माध्यम से पिता के मन
में पुत्री के विवाह की चिंता की अभिव्यक्ति की है-
सुरभी सों खुलन सुकवि की
सुमति लागी,
चिरिया सी जागी चिंता जनक
के जियरे।
धानुष पै ठाढ़े राम रवि से
लसत आजु,
भोर के से नखत नरिंद भए
पियरे।
रघुनाथ(कवि)
No comments:
Post a Comment