हिन्दी साहित्य
Thursday, October 5, 2017
आज स्वरूप को खोकर ही.......
पयस्विनी सी बहना है तो
बर्फ सा गलना होगा।
गहनों में गढ़ना है तो
सोना सा तपना होगा।
आज स्वरूप को खोकर ही
नये रूप में ढ़लना होगा।
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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