चावल
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
चावल का हमारे जीवन
में महत्वपूर्ण स्थान है. खाद्यान्न के रूप में तो गेहूँ के बाद चावल का प्रयोग सबसे अधिक होता ही है. भारतीय संस्कृति में प्रतीक रूप से भी चावल के विभिन्न
रूपों का प्रयोग होता है जैसे-अक्षत, खील, धान.
अक्षत-
अक्षत साबूत चावल को कहते
हैं. हर पूजा की थाली में रोली-चन्दन के साथ अक्षत अवश्य रखे जाते हैं, ये श्वेत
वर्ण मोती के प्रतीक हैं.
खील-
खील छिलका सहित चावल(धान)
से बनायी जाती है. दीवाली पर्व पर लक्ष्मी-पूजन में बतासे-खिलौने के साथ खील का भी
भोग लगाया जाता है. जैसे- धान अग्नि के गर्भ में तपकर शुभ्रवर्ण मुस्काती खील में
परिवर्तित हो जाती है उसी प्रकार दीवाली की रात असंख्य दीपकों की रोशनी से अँधेरी
रात भी जगमग-जगमग करती मुस्कुरा उठती है.
खील का विवाह के समय भी
प्रतीक रूप में विशेष महत्व है. विवाह के समय नव-दम्पत्ति अग्नि में खील की आहुति
देते हैं, जिसका तात्पर्य है कि जब तक पति-पत्नी दोनों मिलकर रहेंगे उनका जीवन सदा
खील की तरह मुस्कुराता रहेगा. जैसे- जब तक धान में चावल के साथ छिलका जुड़ा रहता
है धान खील के रूप में अग्नि के गर्भ से भी बाहर मुस्कुराती जाती है.
धान-
कन्या के विवाह के समय गौरी
पूजन के समय कन्या के चारों ओर कन्या के माता-पिता, चाचा-चाची, मामा-मामी, आदि सभी
रिश्तेदार परिक्रमा करते हुये धान बोते हैं और माँ पानी देकर सींचती है जो इस बात
का प्रतीक है कि कन्या का धन धान के समान होता है. जब तक इन्हें अन्य न रोपा जाये
ये फलीभूत नहीं होती.
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