जब हिमालय कैद हुआ बक्से
में
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
बात सन् 1965 ई0 की है, बड़े भैय्या की शादी थी.
सारा घर मेहमानों से भरा था, जहाँ देखो वहाँ उत्साह ही उत्साह था. दादी-बाबा के
बड़े पोते की, अम्मा-बाबूजी के बड़े बेटे की पहली शादी का दिन था. ‘घुड़चढ़ी’ के लिये सभी नये-नये
वस्त्र-आभूषण पहन कर तैय्यार होने में व्यस्त थे. बड़ी जीजी भी अपने बच्चों को,
स्वयं तैय्यार होने के लिये बक्से से पोशाक निकालने गईं. देखती क्या हैं कि सारे
कपड़े गीले हो चुके हैं, कपड़ों के ऊपर छोटा सा बर्फ का टुकड़ा तैर रहा है. जीजी
यह देखकर बहुत ही अचंभित हुईं, सोचने लगीं किसने करी होगी यह बेहुदा हरकत. देखती
क्या हैं कि पास ही उनका बड़ा बेटा जो मात्र छः साल के लगभग होगा, सहमा खड़ा है.
जब मनोज से पूछा तो उसने भोलेपन से सब कहानी कह दी कि, ‘हमारे यहाँ बुगरासी* में तो बर्फ मिलती नहीं
है, इसीलिये हमने बर्फ अपने बक्से में चुपचाप रख ली थी.’
*बुलन्दशहर जिले में एक कस्बा है जहाँ जीजी रहती
थीं.
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