होली के दोहे
आसमान टेसू हुआ धरती सब
पुखराज
मन सारा केसर हुआ तन सारा
ऋतुराज।
पूर्णिमा वर्मन
सूखे रंगों से करो, सतरंगी
संसार।
पानी की हर बूँद को, रखो
सुरक्षित यार।
धर्मेन्द्र कुमार 'सज्जन'
होली में गणपति हुये, भाँग
चढ़ाकर मस्त
डाल रहे रंग सूँड से,
रिद्धि-सिद्धि हैं त्रस्त।
आचार्य संजीव सलिल
होली में श्री हरि धरे,
दिव्य मोहिनी रूप
कलशा ले ठंडाई का, भागे दूर
अनूप।
आचार्य संजीव सलिल
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