Sunday, July 12, 2015



'मैं' ही 'बूँद' में,
'मैं' ही 'समुद्र' में,
'मैं' ही जल में 'तरंग',
'मै' ही हवा में 'खुशबू',
'मैं' ही धरा पे 'जीवन',
'मैं' ही व्योम में 'शब्द',
'मैं' ही अग्नि में 'ऊर्जा',
'मैं' ही रखता 'नाना रूप'
'मैं' ही 'यत्र तत्र सर्वत्र'.
            डॉ0 मंजूश्री गर्ग
 
 
'मै' ईश्वर के लिये प्रयुक्त हुआ है.


No comments:

Post a Comment