अप्रतिम रूप सौंदर्य की मल्लिका
लौह जैसा हूँ मैं और पारस हो तुम
बेरूखी में तुम्हारी बिखर जाऊँगा
मुझको छू लोगी तुम तो निखर जाऊँगा।
राज शुक्ल नम्र
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