Saturday, June 4, 2022




कल-कल, छल-छल बहती, गंगा की निर्मल धारा।

सुबह सूरज बिखेरे, स्वर्णिम किरणें उस पर।।


रेतीले तट पे लगते मेले मावस-पूनों।

जलते अनगिन दीप गंगा की धारा पर।।


                                       डॉ. मंजूश्री गर्ग 

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