Thursday, September 1, 2022


संघर्षमय जीवन

 डॉ. मंजूश्री गर्ग

संघर्षों की गाथा पूछो,

नदी की मीठी धारा से।

पग-पग पे सहती आयी,

चट्टानों की चोटें।

 

संघर्षों की गाथा पूछो,

मुस्काती कली से।

पली, बढ़ी, खिली,

काँटों भरी डाली संग।

 

संघर्षों की गाथा पूछो,

देदीप्यमान दीप से।

अड़िग अस्तित्व बनाये,

लड़ रहा अंधकार से।

 

अमृतम, सुगंधमय,

ज्ञानमय बनना है तो

नदी, कली, दीप सा

जीवन जीना सीखो।

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