बीत रहे हैं
दिन सतरंगी
केवल ख्वाबों में
चले मुश्किलों
का हल ढ़ूँढ़े
खुली किताबों में।
इन्हीं किताबों में
जन-गण-मन
तुलसी की चौपाई,
इनमें गालिब,
मीर, निराला
रहते हैं परसाई
इनके भीतर
जो खुशबू वो
नहीं गुलाबों में।
जय कृष्ण राय तुषार
No comments:
Post a Comment