Wednesday, September 21, 2022

 


बीत रहे हैं

दिन सतरंगी

केवल ख्वाबों में

चले मुश्किलों

 का हल ढ़ूँढ़े

खुली किताबों में।

 

इन्हीं किताबों में

जन-गण-मन

तुलसी की चौपाई,

इनमें गालिब,

मीर, निराला

रहते हैं परसाई

इनके भीतर

जो खुशबू वो

नहीं गुलाबों में।

   जय कृष्ण राय तुषार

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