अक्षर तो केवल
गूँदी कच्ची मिट्टी हैं
हम उनसे
नई-नई मूर्तियाँ बनाते हैं
गीत तभी
होठों से होंठों तक जाते हैं।
माहेश्वर तिवारी
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